साहित्य संगीत कला विहीनः।
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः।।
भतृहरि का यह श्र्लोक मानव जीवन से कला के महत्व पर प्रकाश डालता है। सच है कला ही जीवन है। मानव जीवन के सरवोगीण विकास के लिए आवश्यक है। यह हमारी मानसिक शक्तियों का भी विकास करता है।
हमारे इतिहास के अभ्यास मे मैने पढा था कि मानव अपने आनंद के लिए मिट्टी से दिवारों पर तोता मैना बनाता था। हमारे देश में नर-नारी पशु पक्षी व प्रकृती आदि के चित्र अपनी मंगल कामना के लिए त्योहार में बनाते थे। हम दिवाली में आंगन में रंगोलीयाँ भी बनाते थे।
वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि बीमार व्यक्ति हो या बढ़ता हुआ पेड उनको संगीत सुनाया जाए तो वह जल्दी बढ जाते हैं और बीमार व्यक्ति जल्दी ठीक हो सकता है। चित्रकार अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करने के लिए चित्र बनाते थे। उनके चित्रों में हमे उनके मन की स्थिति का विवेचन होता था।
कला ने मानव जाति को नइ राह दिखाई है। कभी साहित्य के माध्यम से तो कभी सिनेमा के रूप में तो कभी चित्रकला के माध्यम से।कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति बीमार हो तो डाक्टर उन्हें सलाह देता है कि वह अपना समय अपनी कला को करने मे बिताए या फिर संगीत सुने।
मैं भी जब बीमार होती हु तब मेरा खाली समय चित्र निकालने मे बिताती हु। इससे मुझे आनंद मिलता है।
कुछ लोगों को अपने खाली समय में कुछ लिखना पसंद होता है और अगर उस लिखावट को किसीने पढ़ा और पसंद किया तो वह कला बन जाती है।
व्यापार करना भी एक कला है। सभी को अलग-अलग खूबियाँ आती है। लेकिन उनका सही उपयोग अगर वह अपनी जिंदगी में करे तो वह कला बन जाती है।
इसलिए कहते हैं कि कला से प्राप्त आनंद अवणरनीय होता है।
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